top of page

संपादक की ओर से

घुड़सवार के पांचवे अंक में आपका स्वागत है!


जब मैंने इस पत्रिका को शुरू करने का निर्णय लिया था, तब मुझे इस बात की काफ़ी चिंता थी कि आख़िर मैं इस पत्रिका के वजूद के बारे में कैसे कवियों को अवगत कराऊंगा। सोशल मीडिया पर मेरी पकड़ शानदार नहीं है, इसलिए सोशल मीडिया मार्केटिंग का भी ज़्यादा सहारा नहीं लिया जा सकता। लेकिन देखिये, अब यह पांचवा अंक है, और हर बार बेशुमार नई आवाज़ें मुझ तक ईमेल के ज़रिये पहुँच रही हैं ! किसी तरह इस पत्रिका की भिनक रचनाकारों तक जा रही है, चाहें वे प्रतिष्ठित हों या अभी भी अनजाने हों। मुझे दोनों को ही प्रकाशित करने में बहुत हर्ष होता है। 


आपको इस अंक की कविताओं को पढ़ने देने से पहले एक और बात। संभवतः आपको पता हो, पिछली बार की हमारी मुलाक़ात से लेकर अब तक के दौरान एक ख़बर है आपके साथ साझा करने के लिए। सितम्बर २०२४ में पत्रिका ने प्रथम घुड़सवार पुरस्कार के विजेता की घोषणा की, जो कि ऑनलाइन प्रकाशित हिंदी कविताओं के लिए है (चाहें वे कहीं भी प्रकाशित हुई हों, ज़रूरी नहीं घुड़सवार में ही) - पुरस्कार विजेता कविता तारा इसाबेल जम्ब्रानो की रचना 'मैं' रही, और अगर आपने इस ख़ूबसूरत लय रखनेवाली कविता को अब तक नहीं पढ़ा है, तो इसे आप यहां पढ़ सकते हैं। जैसा कि आपको मालूम ही होगा, पुरस्कार जीतने वाली कविता को १०० डॉलर की भेंट दी जाती है।


आख़िर में एक गुज़ारिश।  घुड़सवार चलाने के एवं पुरस्कार के सभी खर्चे मेरी अपनी ही जेब से होते हैं, इसलिए अगर आपका सामर्थ्य हो, और अगर आप हिंदी साहित्य में उन्नति एवं नयी आवाज़ें देखना पसंद करते हैं, तो कृपया पत्रिका को दान दें। 


प्रणाम,


अंकुर अग्रवाल

संपादक, घुड़सवार साहित्यिक पत्रिका


दिसंबर २०२४, लिल्लेस्त्र्यम, नॉर्वे

एक्स / ट्विटर - @ankurwriter

फ़ेसबुक - @ankurwriter

bottom of page