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संपादक की ओर से

घुड़सवार साहित्यिक पत्रिका के इस ऐतिहासिक, प्रथम अंक को पढ़ने के लिए आपका स्वागत है !

इस पत्रिका का जन्म मेरे द्वारा महसूस की गयी दो कमियों को पूरा करने के लिए हुआ -- एक, हिंदी भाषा में बहुत कम उद्गारों का प्रकाशित होना, जब कि यह दुनिया की सबसे ज़्यादा बोले जाने वाली पांच भाषाओं में से एक है, और दो, अंग्रेज़ी भाषा में भी, बोले तो, एक प्रकार के श्वेत वर्चस्व का नज़र आना, जब कि अंग्रेज़ी अब केवल अंग्रेज़ों की भाषा नहीं रही, परन्तु विश्व में जन-जन की भाषा बन चुकी हैं। 

इसीलिए घुड़सवार हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में कविताओं को प्रकाशित करती है, और मुझे ख़ुशी है कि हमें ऐसी कवितायेँ भी मिलीं जिन में आडम्बर कम था, और दिल की बात सीधे-सच्चे रूप से कहने की मंशा ज़्यादा थी। यह नहीं कि हमें जटिलता पसंद नहीं -- इस अंक में आप को वे कवितायेँ भी मिलेंगी जो एक बार पढ़ने में बहुत जटिल लग सकती हैं -- लेकिन हमें जटिलता केवल जटिलता के हेतु नहीं पसंद। कई बार बात कहने के लिए सरलता ज़रूरी है, कई बार जटिलता आवश्यक है -- हर बात कहने का अपना अंदाज़ होता है जिसे वह बात ही स्वयं चुन लेती है। 

एक संपादक की हैसियत से इस पत्रिका को सुगठित करने में मुझे कुछ दिक़्क़तें ज़रूर पेश आयीं। ख़ास कर कि इसके अस्तित्व के बारे में लेखक समुदाय को अवगत कराना। ऐसा करने में अभी भी मुझे अथक, निरंतर प्रयास करने की ज़रूरत है -- ताकि गाँव-देहातों के भी उन लोगों तक बात पहुँच सके जो लिखते तो बहुत अच्छा हैं लेकिन शायद उन्होंने कभी अपने आप को लेखक की तरह समझा या देखा नहीं है। और यहां लिखी कवितायेँ हिंदी प्रेमियों तक भी पहुंचें। 

इस अंक के सभी योगदान देने वालों को मेरा आभार, और मेरी रचनाकारों एवं पाठकों, दोनों से ही गुज़ारिश है कि वे इस पत्रिका के बारे में जन-जन तक बात फैलाएं, सोशल मीडिया के द्वारा और अपने दोस्तों और परिचितों से बातचीत दोनों के ज़रिये। 

अंकुर वि. अग्रवाल 
संपादक, घुड़सवार साहित्यिक पत्रिका 

अगस्त २०२३, लिल्लेस्त्र्यम, नॉर्वे


Twitter: @ankurwriter
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