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मिताली खोड़ियार

हिन्दी , छत्तीसगढ़ी, गुजराती, अंग्रेज़ी भाषाओं में लेखन ।
काव्य संग्रह  "लहरें"  ,साझा काव्य संग्रह 'रचनाएँ ' प्रकाशित । 

बिलासपुर गुजराती समाज की तरफ से 'श्री  सरस्वती सम्मान’ गुजरात में  अखिल भारतीय कच्छ समाज की ओर से 'विशेष सम्मान'  (साहित्य ,कला व समाजसेवा के लिए) अखिल भारतीय महिला महामंडल की तरफ से 'विशिष्ट गौरव सम्मान'  से सम्मानित ।

एक योद्धा के लिए

तीरथगढ़ जलप्रपात अपने सौंदर्य में मदमस्त,

मैंने अपने केशों को खोला, आँखें ऊँची कर,

गर्व से मुस्काई,

दो शक्तियां आमने सामने थी,

 

थप, थप, थप, थाप !

मैंने पूछा, "कौन हो तुम?"

"योद्धा, मैं एक योद्धा," उसने कहा,

 

उसकी आँखें जलप्रपात के जल सी पवित्र,

ओह! कितना ओजमयी रूप,

लाल सूर्य टुकड़ों में बटकर,

उसके कानों के कुण्डलों में समा गया था,

 

माथा किसी राजा की समृद्धि  की तरह उन्नत,

उसके बलशाली कंधों पर मस्तक टिकाना हर नारी का स्वप्न हो जैसे,

ये कौन सा मोह है, जो मोहित किये जा रहा है?

 

मैंने पूछा, "क्या तुम राजा हो?"

"योद्धा, मैं एक योद्धा"

 

थोड़ा बेचैन सा दिखता है,

साहसी, बहादुर , सौम्य,

स्वप्न में दिखी देवी की आराधना को निकला है?

 

मुझे तो वह लोगों का राजा दिखता है,

उसका साम्राज्य फैला है, दूर खेतों तक,

जंगल के आदिवासियों के हृदय से लेकर,

मावली माता पर चढ़े फूलों तक,

उसका साम्राज्य है,

किसी नन्हे शिशु की मुस्कान से लेकर,

माँ दंतेश्वरी के चरणों तक,

किसी युवती के सपनों से लेकर,

अपने पूर्वजों के आशीर्वादों तक,

उसका साम्राज्य कहाँ नहीं फैला!

 

मैंने कहा, "योद्धा रुक जाओ! ठहर जाओ!

तुम्हारे माथे में अपने होठों से एक प्रेम चिह्न रच दूं,

वो लोग किस्मत वाले हैं प्रिय, जो तुम्हारी किस्मत में हैं"

"मुझे जाना होगा, मुझे अपने साम्राज्य के लिए कई युद्ध लड़ने हैं,"

 

"योद्धा! सुनो मुझे तुमसे प्रेम ..."

बिना सुने वह जा चुका था,

मैं अपने हाथों की आड़ी-टेढ़ी रेखाओं में कुछ खोजने लगी,

 

उस योद्धा के घोड़े के थाप की आवाज़,

जलप्रपात में कहीं खो गई,

मैंने अनमनी सी नजरें उठाईं,

मेरे अधूरे प्रेम का दर्द , मेरे विरह की पीड़ा,

हे! जलप्रपात तुम्हारी सुंदरता भी नहीं भर सकती।

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