संजना
संजना भारत के बिहार राज्य से हैं और वर्तमान में मेडिकल परीक्षा के लिए अध्ययन कर रही हैं। कविता लिखना व पढ़ना इनके लिए धूप में चलने के दौरान किसी छायादार वृक्ष के नीचे बैठ कर जो सुकून मिलता है, उस आत्मीय शांति के समान है।
"कुछ कहना है ..."
इस असंख्य भीड़ के
बीच में,
मैं खड़ी चिल्ला रही थी ...
कुछ कहना था ...
कहना है मुझे,
सुनो ... सुनो, सुनो न ...
यह कोई सुनता क्यों नहीं
मुझे,
अरे भई!
सुन लो न थोड़ा ...
अच्छा आप ...!
आप ही सुन लो न ...
मैं चिल्लाती रही
ज़ोर-ज़ोर से,
किसी ने मेरी नहीं सुनी।
थक-हार कर मैंने
थोड़ा बैठने की सोची,
बिल्कुल शांत
बिना कुछ बोले ;
मैं बैठ ही रही थी कि
यह क्या ...
यह कौन चिल्ला रहा है ...?
यह शोर कैसा है,
मैंने झांक कर देखा
तो ...
सभी मेरी तरह ही चिल्ला रहे थे,
बिना कुछ सुने ;
अपनी ही धुन में ...
तो बताओ भला
इतने शोर में ...
जब सबको सुनाना है,
और अब मैं भी चिल्लाऊं तो ...
कौन किसकी सुनेगा ...?
इसलिए,
अब मैं चिल्लाती नहीं,
बस सुनती हूँ ...
सबकी,
जो भी सुनाते हैं ...
मुझे,
बस सुनती हूँ
उन सबकी ...।