पवन कुमार
पवन कुमार धनबाद (झारखंड) के निवासी हैं। इन्होंने मानव संसाधन में एमबीए एवं धातुकर्म अभियंत्रण की पढ़ाई की है। वर्तमान में यह स्टील ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड में इंजीनियरिंग एसोसिएट के पद पर कार्यरत हैं। इन्हें कविता लिखना, घूमना एवं क्रिकेट खेलना पसंद है। कविताओं में इनकी रुचि बचपन से ही रही है। इन्हें सुमित्रानंदन पंत, माखन लाल चतुर्वेदी, राबर्ट फ्रॉस्ट एवं विलियम शेक्सपियर की कविताएं बहुत पसंद आती हैं।
भारत भाग्य विधाता
हे भारत ख़ुद में मिला ले,
तो तेरी आत्मा बन जांऊ।
तेरी खुशियों में झुंमू ,
दुख में संग हो जांऊ।
तेरी हरियाली में लहरांऊ,
बदहाली में संतोष कर पांऊ।
अपने में समा ले,
तो महात्मा बन जांऊ।
हे भारत, ख़ुद में मिला ले ,
मैं भी भारत कहलांऊ।
हिमालय सा निश्चय हो मेरा,
हिंद सा हो आकार।
थार सा क्रोध हो,
बुद्ध सा हो विचार।
धर्मों की इस भूमि में,
धर्मात्मा बन जांऊ।
तुझ में विलय कर,
नया जीवन मैं पांऊ।
हे भारत ख़ुद में मिला ले,
मैं भी भारत कहलांऊ।
भाग्य का अभ्युदय हो मेरा,
जी पांऊ ग्रीष्म, शीत, सब एक सबेरा।
गंगा की करुणा में खोकर,
बहुजन की आत्मा को धोकर,
कर मालिन ख़ुदको पवित्र बन,
भागीरथी से पदमा कहलाऊं।
समेट ख़ुद को तुझमें,
स्वयं में उमंग भर पांऊ।
हे भारत ख़ुद में मिला ले,
मैं भी भारत कहलांऊ।
कैमूर के जंगलों में रहकर,
संगमरमर के पत्थरों से गिरकर,
गरसोपा पर इठला,
धुआंधार कहलांऊ।
नंदा से नामचा तक चढ़कर,
धुबरी से सदिया में बहकर।
दिहंग से मेघना हो जाऊं,
हे भारत ख़ुद में मिला ले,
मैं भी भारत कहलांऊ।
जीव जातियों का आवास बनूं मैं,
अपना गौरव का इतिहास पढूं मैं।
संस्कृतियों की मातृभूमि पर,
वेदो का अभ्यास करूं मैं,
संग प्राप्त कर इस भूमि का,
मैं भी भगवान बन जांऊ।
हे भारत ख़ुद में मिला ले,
तो मैं भी भारत कहलांऊ।