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प्रभजोत कौर

प्रभजोत कौर राजस्थान के जोधपुर जिले की रहने वाली हैं पर पिछले १० साल से पढ़ाई के लिए दिल्ली में रह रही हैं। यह एक शोधार्थी हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय से "महिला आत्मकथाओं" में पीएचडी कर रही हैं। किताबें पढ़ना और फिल्में देखने में इनकी रुचि है। इनका सबसे पसंदीदा नॉवेल अमृता प्रीतम का "नागमणि" है।  इब्ने इंशा, गुलजार, अहमद फराज, फैज़ अहमद फैज़, साहिर लुधियानवी, शिव बटालवी, परवीन शाकिर, अमृता प्रीतम की कविताएं इन्हें बहुत पसंद हैं। 

प्रेत

फर्ज़ करो ये हमारी आख़री रात है

हमारे नसीब में लहू ही लहू है

हमारी जेबों में रेत ही रेत है

मेरे मोहल्ले को ग़ुमान है

की तुम्हारे पेट में प्रेत है

तुम मुझे मिल सकती थी

गुलमोहर के पेड़ नीचे गुनगुनाते हुए

तुम मुझे मिल सकती थी

वहशी प्रेमियों की नज़रों से शर्माते हुए

पर तुम मुझे मिली

एक प्राचीन मंदिर के फर्श पर

सर पटकते हुए

तुम मुझे मिली

एक खाली शहर के शमशान

में भटकते हुए

तुम बार बार मुझसे बिछड़ती रही

मैं तुम्हे फिल्में दिखाने ले जाता

तुम थिएटर के अँधेरे में खो जाती

मैं तुम्हे मेले घुमाने ले जाता

तुम मेले की आख़री दीवार कुचर खाती

मैं खाने को तरह तरह की चीज़ें बनाता

तुम अपने होने का मातम मनाती

तुम कहती रही पर

मैंने नहीं सिखाया तुम्हे खाना बनाना

मैंने तुम्हे सिखाया लिखना प्रेम पत्र

मैं तुम्हारे साथ खेल सकता था

लुका-छुपी और घर-घर

पर मैंने तुम्हे सिखाया खेलना

चिड़िया उड़ और स्टोन पेपर सिज़र

और तुम हर बार चुन लेती उन तीन पत्थरों को

जिनको देख पंडित और मौलवी

तुम्हे फिर उस प्रेत के हवाले कर देते

जिसने बचपन में तुम्हारा पेट नोचा था

मैं तुम्हे हर बार ढूंढ लूंगा

अपनी नीयत की पूरी सच्चाई से मैंने यही सोचा था

तुम उस प्रेत की थी

और फिर उस प्रेत की हो जाओगी

ये हमारी आख़री रात है

मुझसे कहो तुम आज

मेरे सीने पर सर रख कर सो जाओगी

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